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भारत-नेपाल लिपुलेख दर्रा विवाद क्या है?

Updated on 21 June 2020
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Vipin kumar gangwar
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Updated on 21 June 2020

India-Nepal Lipulekh Pass dispute: नेपाल ने अपना नया नक्सा बनाया है जिसमें भारत के तीन क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को शामिल किया गया है. अब नेपाल सरकार इस नक्से को मान्यता देने के लिए संसद में संविधान संशोधन बिल को पास करने की तैयारी में है

भारत की भूमि सीमा 15,106.7 किलोमीटर और तटरेखा 7,516.6 किलोमीटर की है जिसमें द्वीप प्रदेश भी शामिल हैं. भारत की सीमा 7 देशों; बांग्लादेश, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, म्यांमार और अफगानिस्तान से लगती है. इसमें भारत की सबसे अधिक सीमा (4,096.7) बांग्लादेश किमी से और नेपाल से 1,751 किमी की सीमा लगती है.

भारत नेपाल लिपुलेख दर्रा विवाद क्या है? (What is the Indo-Nepal Lipulekh Pass dispute)

कई सालों से निर्माणाधीन 90 किलोमीटर लंबी धारचूला लिपुलेख सड़क (Lipulekh Road) परियोजना का 8 मई 2020 को परियोजना का शुभारंभ किया था. अर्थात इस सड़क के बनने के बाद चीन की सीमा से सटे 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रा अब उत्तराखंड के धारचूला से जुड़ जाएगा. इस सड़क को बनाने के लिए पहाड़ को भी काटा गया है. 

रक्षा की दृष्टि से इस सड़क के बनने के बाद भारतीय सेना की पहुँच इस क्षेत्र में और आसान हो जाएगी. नेपाल लिपूलेख दर्रे को अपनी सीमा का हिस्सा मानता है. इसी कारण चीन से नेपाल को इस सड़क का विरोध करने के लिए भड़का दिया है और नेपाल को चीन आजकल ज्यादा ही मीठा लग रहा है इस कारण इस विवाद का जन्म हुआ है.


नेपाल की आपत्ति पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने 9 मई को कहा, "हाल ही में पिथौरागढ़ ज़िले में जिस सड़क का उद्घाटन हुआ है, वो पूरी तरह से भारतीय क्षेत्र में पड़ता है. कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री इसी सड़क से जाते हैं."

लिपुलेख दर्रे की अवस्थिति (Location of Lipulekh Pass)

लिपुलेख दर्रा (ऊंचाई 5,200 मीटर या 17,060 फीट) भारत के उत्तराखंड राज्य और चीन के तिब्बत क्षेत्र के बीच की सीमा पर स्थित एक हिमालयी दर्रा है. नेपाल इसके दक्षिणी हिस्से (जिसे कालापानी कहा जाता है) को अपना भाग मानता है, जो कि 1962 से ही भारत के नियंत्रण में है. 

lipulekh-pass

उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की सीमाएं नेपाल और चीन जैसी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से मिलती हैं. नेपाल की सीमा पर SSB और चीन की सीमा पर ITBP की तैनाती है. 

वर्तमान में यह दर्रा भारत से कैलाश पर्वत व मानसरोवर जाने वाले यात्रियों द्वारा विशेष रूप से इस्तेमाल होता है. लगभग 17500 फुट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रे को लीपू पास या लिपू दर्रा भी कहा जाता है. यह क्षेत्र भारत के उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र को तिब्बत के तकलाकोट (पुरंग) शहर से भी जोड़ता है.

धारचूला-लिपुलेख सड़क का महत्त्व (Importance of Lipulekh-Dharchula Road )

सडक बनने से पहले लोग धारचूला से करीब 90 किलोमीटर का सफर तय करके लोग लिपुलेख तक पहुंचते थे. आईटीबीपी और भारतीय सेना के जवानों को भी लिपुलेख तक पहुंचने में दो से 3 दिन का समय लगता था. लेकिन अब सड़क बनने से कुछ ही घंटों में धारचूला से लिपुलेख तक पहुंचा जा सकता है और भारतीय सैनिकों की गाड़ियां चीन की सीमा तक पहुँच सकेंगी.

कैलाश मानसरोवर तीर्थयात्रियों को इस 90 किलोमीटर लंबे रास्ते की कठिनाई से राहत मिलेगी.

kailash-mansarovar-yatra

नेपाल लिपुलेख-धारचूला सड़क का विरोध क्यों कर रहा है? (Why is Nepal Opposing Lipulekh-Dharchula Road)

1. नेपाल दावा करता है कि 1816 की सुगौली संधि के अनुसार, लिपुलेख दर्रा उसके इलाके में पड़ता है, इसलिए यहाँ पर भारत के सड़क बनाना गलत है. सुगौली संधि 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के बीच हुई थी.

2. नेपाल कहता है कि सुगौली संधि (Sugauli Treaty) भारत के साथ उसकी पश्चिमी सीमा का निर्धारण करती है. सुगौली संधि के अनुसार, महाकाली नदी के पूरब का इलाक़ा जिसमें; कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख शामिल हैं, नेपाल के क्षेत्र हैं. 

3. हालांकि साल 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से ही कालापानी में भारतीय सैनिक तैनात हैं क्योंकि 1962 के भारत और चीन युद्ध में भारतीय सेना ने कालापानी में चौकी बनाई थी.

ज्ञातव्य है कि काली नदी का उद्गम स्थल कालापानी ही है. पिछले साल भारत ने कालापानी को अपने नक्शे में दिखाया जिसे लेकर भी नेपाल ने विरोध जताया था.

4. नेपाल के हजारों लोग उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में; माल ढुलाई का काम, पहाड़ों के एक्सपीडिशन में आए लोगों के साथ गाइड और कैलाश मानसरोवर यात्रियों के साथ वोटर का काम करते हैं. इस कारण अब जब यह सड़क बन जाएगी तो इन नेपाली लोगों को अपना व्यवसाय छिनने का खतरा नजर आ रहा है.

चूंकि दोनों पक्षों के पास अपने तर्क हैं और मामला दोनों की नेशनल सिक्यूरिटी का है इसलिए इस विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाना ज्यादा बेहतर विकल्प है.

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